रविवार, 17 जुलाई 2011

कभी कभी ऐसा भी...होता है जिंदगी में…

ऑफिस के पीछे का ये एरिया मुझे ऑफिस से भी अच्छा लगता है…कच्ची ज़मीन…थोड़ी-थोड़ी जगह घेर के बनाई गयी कुछ कच्ची पक्की दुकाने…चाय, मैगी, पकोड़े,पराठे,इडली, डोसा और न जाने क्या क्या…सब मिलाता है यहाँ पे…कुछ ऑटो भी आके खड़े हो जाते हैं…उनपे चलते हुए उदित नारायण की आवाज़ के गाने…ऐसा लगता है की यू पी के किसी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए हैं…ऑफिस घर से ज्यादा दूर नहीं है तो अक्सर रात में मैं भी यहाँ आ जाता हूँ… पूरी रात खुली रहती है ये जगह…
बरसात की सूखी रात…पानी बरसने को था पर बरसा नहीं था…शाम फ्राईडे की थी…तो मौसम खुद ही अलग हो गया था…मैं अपने एक दोस्त के साथ एग-रोल खाने वहाँ आ गया …एक और खास बात है इस जगह की…ये अपने आप में एक छोटा भारत है…हर मजहब के , अमीर गरीब, छोटे बड़े सब मिलते हैं यहाँ….थोडा टाइम लग रहा था…तो वहीँ पास पड़ी एक कुर्सी पे हम दोनों बैठ गए…
JanakiChatti03_Oilpainting_3कुर्सियां एक होटल वाले ने बिछा रखी थी…वो हर चीज़ जो एक आम इंसान खा सकता है वहाँ मिलती थी…दाल, रोटी, चिकन,  चावल सब कुछ….लोग आ रहे थे, खा रहे थे और जा रहे थे…हमारे सामने भी कुछ और लोग आ के बैठ गए…
२ दोस्त..फिल्मों से काफी प्रभावित..”देल्ही बेल्ली ने तो बवाल कर दिया यार, मज़ा आ गया…कल देखते हैं जिंदगी न मिलेगी दोबारा"…१ थोडा सा अधेड उम्र का इंसान…कुछ ज़माने से भडका हुआ….और १ गार्ड जो अभी शायद अपनी ड्यूटी खतम करके आया था…
एक दाल मखानी और ६ रोटी …दोनों दोस्तों की डिमांड आयी…एक शाही पनीर और बटर रोटी…ज़माने से परेशां शख्श ने बोला….और गार्ड मेनू देख रहा था.. डिसाइड करने के लिए….
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दोनों ने कॉलेज साथ में किया था…ऑफिस भी पास ही था…एक ज़माने के रूम मेट आज वीकेंड फ्रेंड बन गए थे….एक अलग सुकून था मिलता दोनों को साथ में…ऑफिस के अपने मैनेजर को गलियां देना हो, किसी नयी टेक्नोलोजी के बारे में बात करना हो या किसी फिल्म की बात करनी हो…दोनों कभी बोर नहीं होते थे…एक और चीज़ थी जो दोनों को जोड़ती थी…”बीयर"..दोनों को बहुत पसंद थी…
शाम से लग रहा था की बारिश होगी…पर हुई नहीं थी…फ्राइडे ऑफिस से निकलते ही दोनों जगह डिसाइड करते थे…आज भी वही किया…जम के बीयर पी…११ बजे जब घर जाने की बात हुई तो एक बोला
“ यार आज कुछ सिम्पल खाना खाते हैं…”
“सेक्टर ४५ चलें वहाँ कुछ देखते हैं" दूसरे का समर्थन आया…
“चल"
और दोनों चल दिए…रस्ते में बातें बदस्तूर जारी थी….टोपिक बदल रहे थे….इंटेंसिटी बरकरार थी….दोनों पहुंचे…होटल पर …
“क्या खायेगा" पहल हुई
“दाल रोटी खाते हैं" दूसरा बोला
“चल ठीक है….साले अपना टमी देख देल्ही बेल्ली का मोटा लग रहा है….ऑरेंज जूस पीता है की नहीं???” पहले का जवाब और कमेन्ट आया…
“देल्ही बेल्ली ने तो बवाल कर दिया यार, मज़ा आ गया…कल देखते हैं जिंदगी न मिलेगी दोबारा” दूसरा एक बार फिर बोला…
“हाँ यार…भईया एक दाल मखानी और ६ रोटियां देना"
और वो दोनों वहीँ बैठ गए जैसे और कोई वहाँ बैठा ही न हो….और बातें एक बार फिर शुरू….
सामने वाले साहब ने भी शाही पनीर और बटर रोटी मंगा ली थी…हाथ धोने का पानी ढूंढ रहे थे सब…तभी वहाँ एक गार्ड आया….उसने मेनू मांगा और उसे देखने लगा…..
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घनश्याम सिंह शहर के एक बड़े प्रोपर्टी डीलर के यहाँ काम करते हैं…भरा पूरा परिवार है…गर्मियों की छुटियाँ खतम ही होने वाली हैं…गाँव से बराबर फोन आ रहा है बीवी का की आकार ले जाओ…कल वो भी जा रहे हैं…
सोचा फ्राइडे शाम थोड़ी और अकेले एन्जॉय कर ली जाये…थोडा देर से निकले आज..आ गए वो भी होटल पे…रस्ते में थोड़ी चढा भी ली…आज बजट थोडा ज्यादा था…अंग्रेजी पी…
होटल पहुँच के तुरन्त आर्डर दिया “ एक शाही पनीर और बटर रोटी..मक्खन डाल के”
सामने खड़े लड़खड़ाते दो बन्दों से पूंछा “ हाँथ धोने का पानी कहाँ मिलेगा"
एक बोला “ हम भी वही ढूंढ रहे”
तभी वहाँ एक गार्ड आया ..उसके हाथ में पानी का मग था…सबने हाथ धोए…गार्ड ने मेनू कार्ड मांग लिया….बाकी किसी को उसकी ज़रूरत नहीं थी शायद…
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पिछली बारिश में पानी कुछ ज्यादा ही बरसा था…गाँव के गाँव उजड़ गए थे …राजू का गाँव उजड़ा तो नहीं था..पर वहाँ बचा भी कुछ नहीं था…उसकी शादी होने वाली थी…लडकी के घर वालों ने सब बेच के शादी टाइम पे करने को बोला तो राजू ने मना कर दिया और बोला जब पूरा गांव रो रहा है तो हम खुश कैसे हो सकते हैं….शादी बाद में होगी…
शहर आ गया काफी दिनों तक कुछ करने को न मिला..गाँव से लाए पैसे भी खतम होने पे आये तो एक चाय की दुकान में काम कर लिया…वहीँ पे किसी से जान पहचान हुई तो उसे एक जगह गार्ड की नौकरी मिल गयी ….पूरे २५०० रुपये महीने की तनखाह …अभी १४-१५ दिन हुए हैं उसको नयी नौकरी करते हुए…चाय की दुकान पे काम करते कुछ पैसे बचा लिए थे…उन्हें गिना तो कुल २५० रुपये निकले… ८० रुपये गाँव तक का किराया ..आने जाने का १६० और अगर ३०-४० रुपये घर पे खर्च कर दिए तो कुल २०० ..लौट के आते ही २० दिन के पैसे तो मिल जायेंगे…उसके पास आज ५० रुपये हैं ..खर्च करने के लिए…आज वो खाना नहीं बनाएगा…बाहर ही खायेगा….
वो भी पहुँच गया उसी होटल…पानी का मग लेकर हाथ धोए….लौटा तो ३-४ और लोग पानी का मग ढूंढ रहे थे…वापस आकर उसने मेनू कार्ड माँगा….उसकी जेब के हिसाब से तो केवल वो सादी दाल और ३ रोटियां खा सकता है…. उसने वही मांग लिया…
सामने वाले साहब ने शाही पनीर मंगाया है … राजू को भी वो बहुत पसंद है…अचानक से सामने वाला बन्दा पानी मांगता है और न मिलाने पर खरीदने चला जाता है…तभी सबके आर्डर डेलिवर कर दिए जाते है….पड़ोस में बैठे दो बंदे “शीला की जवानी” गाते हुए रोटी खाने लगते हैं …पर उसका मन तो शाही पनीर में लगा हुआ है…सोंचता है अँधेरा है एक चम्मच निकाल लूं तो कोई क्या जान पायेगा….वो चम्मच उठाता है…पर रुक जाता है….ऐसा लगता है किसी ने उसके हाथ बाँध दिए हों….”शीला की जवानी” थोडा और लाउड हो गया है…तभी सामने वाला बंदा भी  आकर बैठ जाता है|
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हमारे एग-रोल और चाय भी आ गए  थे, हम दोनों भी बाकी ४ लोगो के साथ टेबल पे बैठ के खाने लगे….ऐसी जगहों पर अक्सर गली के कुत्ते भी आकर बैठ जाते हैं…कुछ बचा-खुचा खाने को मिल जाता है उन्हें..बाकी न उन्हें आने वाले कुछ देते हैं न होटल वाले….
एक ऐसा ही कुत्ता मेरे सामने भी आकार बैठ गया…मैंने दुत्कार दिया…मेरे दोस्त ने भी वही किया….वो बाकी दो लड़कों की तरफ बढ़ा…उन्होंने उसे देखा भी नहीं….तीसरे इंसान के पास गया …उनका फोन बज गया था..वो बात कर रहे थे, फुर्सत नहीं थी उनके पास….अंत में वो उस गार्ड के पास चला गया….गाँव में उसके घर से कभी कोई भूका नहीं गया था…पर आज तो उसके खुद के पास ही पूरा नहीं है खाने को….दिल तो उसका किया की एक रोटी दे दे ..पर दे नहीं पाया…मन ने मना कर दिया….उसने अपनी दो रोटियां ज़ल्दी ज़ल्दी खतम की…
तीसरी रोटी का पहला निवाला तोडने ही वाला था की उसके हाथ रुक गए…मन ने उसे खा जाने को बोला पर दिल जीत गया इस बार…उसके हाथ खुल गए ..उसने रोटी कुत्ते को दे दी …वो बोला “किस्मत अपनी अपनी है दोस्त.. अपन पेट फिर कभी भर लेंगे..आज सोने भर को इतना काफी है….”
उठा ..हाथ धोए और पैसे देकर वो वहाँ से चला गया…..घर जाने की खुशी दोहरी हो गयी थी उसकी…
हम सब उसे देखकर चौंके और फिर देखते रह गए…..सूखी रात में भी हम सबके दिल पसीज चुके थे…..

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